Sunday, January 22, 2012

रचनाकार: विजय वर्मा की ग़ज़ल - सिद्धार्थ कभी बुद्ध बन ही नहीं पाते, गर सुजाता के हाथों में खीर नहीं होती.

रचनाकार: विजय वर्मा की ग़ज़ल - सिद्धार्थ कभी बुद्ध बन ही नहीं पाते, गर सुजाता के हाथों में खीर नहीं होती.

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